Wednesday, March 4, 2009


Real black
उसकी बेनूर आंखों में न कोई ख्वाब है न जुबां पर कोई ख्वाहिश, लेकिन फिर भी वह लोगों को बोझ लग रहा है. आठ साल ·के रिंकु कि जिन्दगी ·कुछ सालों पहले आई हिट फिल्म ब्लैk कि तरह है लेकि न शायद मिशैल ·को मिस्टर सहाय जैसे हमदर्द सिर्फ परदे ·कि कहानी में ही मिल स·ते हैं. रिंकु के लिए एक हमदर्द तो क्या शहर में बनाए गये स्पेशल स्कुलों ने भी उसे रखने से मना कर दिया. पिछले 13 महीनों में वह कभी मेडिकल कालेज के फुटपाथ पर सोया तो कभी मथुरा तक ले जाया गया,
कभी रिंकू के नाम से पुकारा गया तो कभी शशांक के, लेकिन एक छत उसे नहीं मिल पाई जहां व सिर छिपा सके. दूसरों को क्या कहें ब्लाइंड बच्चों को रखने वाला मोहान रोड स्थित ब्लाइंड स्कूल तक ने उसे पनाह देने से मना कर दिया. इस स्कूल ने इसके पीछे लोकल गार्जियन न होने का लॉजिक दिया.एक कुर्सी पर वह सिर झुकाए घंटों बैठा रहा, जब उसे उठाया गया तो वह वहीं जोर जोर से हिलने लगा लगा जैसे कुछ कहना चाहता हो. रिंकू जिसे न दिखाई देता है और न ही वह सुन सकता है यहां तक कि वह बोल भी नहीं सकता. इस उम्र में बच्चों का फेवरेट बाल जिसे वह अपने इशारों पर नचाते हैं ंिरकू के हाथ में जैसे ही दिया गया उसने उसे मुंह में रख लिया. उसकी दुनिया अलग है. मानो यही उसकी जिन्दगी है. लेकिन इस मासूम को क्या मालूम कि उसकी इसी दुनिया ने उसे लोगों से अलग कर रखा है.ŒÜðÅUȤæ×ü ÂÚ ç×Üæ ‰ææ çÚU¢·ê¤2007 में चारबाग पर काम करने वाली एक संस्था को रिंकू यानी शशांक मिला था. उस वक्त वह गम्भीर रूप से बीमार था जिसके चलते उसे सीएसएमएमयू के चिल्ड्रेन वार्ड में एडमिट करा दिया गया था. करीब छह महीने बाद जब वह ठीक हुआ तो सीएसएमएमयू अथारिटीज ने फालोअप कराना शुरू किया लेकिन उसे कोई लेने नहीं आया.ç·¤âè Ùð ÙãUè´ ·¤è ×ÎÎईश्वर चाइल्ड वेलफेयर की अध्यक्ष सपना उपाध्याय कहती हैं कि जो संस्था इस बच्चे को यहां छोड़ गई थी, जब हमने उससे बात की तो उसने कहा कि इस तरह के बच्चे हमारे पास नहीं हैं. फिर हमने शहर की उन संस्थाओं से बात की जो इस तरह के बच्चों की मदद का दावा करती हैं. लेकिन हर कहीं हमें मना कर दिया गया. इस बच्चे को हमने ब्लाइंड स्कूल मथुरा भेज दिया. लेकिन तीसरे दिन इस बच्चे को मेडिकल कालेज के गेट पर देखा तो हैरान रह गई. वहां के लोग इसे चुपके से गेट पर छोड़ कर चले गये थे. तब से हमारी परेशानी और बढ़ गई. मेडिकल कालेज में हम इसे कहां तक रख सकते थे. रिंकू ने महीनों यहीं कैम्पस में गुजारा. पिछले तीन महीनों से वह सक्षम फाऊंडेशन की मदद से अशोक पुनर्वास केन्द्र में रह रहा है लेकिन उसे एक स्पेशल स्कूल की जरूरत है. °ÇU×èàæÙ ·ð¤ ÕæÎ ×Ùæ ·¤ÚU çÎØæचाइल्ड वेलफेयर कमेटी की मेम्बर साधना मेहरोत्रा ने रिंकू के बारे में कहा कि यह एक बच्चे की बात नहीं. बहुत बड़ा सवाल है कि ंिरंकू की तरह मजबूर दूसरे बच्चों की देखभाल कौन करेगा. हमारी चेयरपर्सन ने स्टेट ब्लाइंड स्कूल मोहान रोड को लेटर लिखा था इस बच्चे के एडमीशन के लिए. उन्होंने हामी भी भर ली, लेकिन फिर अचानक मना कर दिया. सरकार की तरफ से कोई इनसेंटिव नहीं मिलता. ऐसे बच्चों के लिए कम से कम एक संस्थान तो होना चाहिए. फिलहाल वह बच्चा अशोक पुनर्वास केन्द्र में रह रहा है, लेकिन क्या उसको पढ़ाई लिखाई का अधिकार नहीं है जो किसी स्पेशल स्कूल में ही सम्भव है. ŽÜ槢ÇU S·ê¤Ü Ùð çȤÚU ×Ùæ ·¤ÚU çÎØæसात साल का रिंकू सीडब्लूसी के लिए भी सवाल बन चुका था. मंगलवार को 5 मेम्बर्स की कमेटी ने एक अहम फैसला लेते हुए कहा कि रिंकू को मोहान रोड स्थित ब्लाइंड स्कूल में ही रखा जाए. यहां उसे पहले एडमीशन देने से मना कर दिया गया था. वहां उसे एडमीशन दिया जाए. लेकिन रिंकू की देखभाल करने वाले अशोक पुनर्वास केन्द्र के विनोद कुमार मिश्रा का कहना है कि मैंने आज सीडब्ल्यूसी के इस फैसले की जानकारी देते हुए ब्लाइंड स्कूल में रिंकू को लाने की बात कहीं, लेकिन उन्होंने फिर मना करते हुए रिंकू के लोकल गार्जियन को लाने की बात दोहराई. फिल्हाल रिंकू हमारे पास है. उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के बच्चों के लिए शहर में संस्थान

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