उम्मीद फिर भी बाकी है
//
//
Mail a Friend
Plz Enter Email Address Plz. enter valid email id (abc@xyz.com)
To :-
Subject :-
Zeba Hasan " name=Txtsubject>
Plz Enter Subject
Message :-
Zeba Hasan
LUCKNOW (1 Jan): न्यू ईयर आ गया. हर घर में खुशी का माहौल है. सभी ने रिलेटिव्स और फ्रेण्ड्स को फोन और मैसेज करके नए साल की बधाईयां दे दीं. हाउस वाइफ्स ने टीवी पर रखे कैलेण्डर भी रिप्लेस कर दिए. लेकिन कुछ घर ऐसे भी थे जहां महिलाएं पिछले कैलेण्डर ही पलट रही थीं. उनकी नम आंखें पिछली वे तारीखें खोज रही थीं जो उन्होंने अपने मायके में मां से गप्पे लड़ाती बिताई थीं. चेहरे पर अनजाना सा डर भी था. डर उस सरहद का जो बनी तो दो देशों के बीच है, लेकिन जिसकी कसक उनके आंगन तक है. यह दर्द शहर की उन महिलाओं का है जो सरहदों के पार नये रिश्ते यानी शादी कें बंधन में बंधकर एलओसी पार कर चुकी हैं. शहर में आईनेक्स्ट ने कुछ ऐसी ही महिलाओं से रूबरू होकर जानने की कोशिश की कि शादी का यह बंधन उनकी आंखों को कितनी बार भिगो गया.ãUÚ ÂãUÜ ×ð´ ææðÁÌè ãUñ´ ©U×èÎ ·¤è ç·¤Ú‡æसमझौता एक्सप्रेस चले या फिर सारेगामापा के मंच पर ताल से ताल मिले, इनके चेहरे पर भी उतनी ही खुशी होती है, जितनी पाकिस्तान में मौजूद इनकी फैमिली के चेहरे पर. कभी पाकिस्तानी बच्चों के चेहरे पर खुशी देखकर तो कभी दोनों मुल्कों के बीच की घटती दूरी में ये महिलाएं उम्मीद तलाशती हैं. उम्मीद फिर घर जा पाने की. फिर मुम्बई हादसे उनकी उम्मीदों पर पानी फेर देता है. हर पल वह यही सोचती हैं कि अब क्या होगा. 1990 में पाकिस्तान की शबनम शादी के बाद लखनऊ आई थीं. हर लड़की की तरह उनके मन में भी मायके जाने की चाह थी, लेकिन शादी के आठ बरस बाद उन्हें पाकिस्तान जाने का मौका मिला. वह बताती हैं कि इस दौरान जब दोनों देशों के बीच नजदीकियां बढ़ीं तो हम जैसे लोगों को सबसे ज्यादा खुशी हुई थी, लेकिन 26-11 के बाद हर वक्त एक ही सवाल सताता है कि अब क्या होगा. दहशतगर्दो ने तो जो करना था कर दिया लेकिन हमारे लिए अपनों की शक्ल देखना अब और भी मुश्किल हो जाएगा. जब से शादी हुई है तीन बार मायके गई हूं. आज भी पाकिस्तानी सिटीजन हूं, लेकिन दोनों ही घर मेरे अपने हैं. उस वक्त मेरे आंसू थम नहीं रहे थे जब पाकिस्तान में मेरी सगी बहन की शादी थी और मैं अपने वीजा के लिए चक्कर लगा रही थी. और फिर मैं बहन की शादी में शरीक नहीं हो पाई.·¤æàæ Îæð çâÅUèÁÙçàæ ç×Ü â·¤Ìèवह दौर कितना अच्छा था, जब सरहद पार से बसें आती और जाती थीं. उस सफर ने कितने बिछड़े हुए अपनों को मिलाया था, लेकिन अब शायद यह लम्बे अरसे तक मुमकिन ही न हों. सब कुछ ठीक चल रहा था 26-11 के बाद एक बार फिर महौल बदल गया है, और हम जैसे कितने लोग सरहदों की खींचतान में जिन्दगी गुजार रहे हैं. यह कहना है पाकिस्तान से अपने ससुराल लखनऊ आई लुबना मुमताज खान का. लुबना बताती हैं कि मैं अपने ही लोगों में कुछ ऐसे लोगों को जानती हूं जो पिछले दस सालों से वीजा के लिए चक्कर लगा रहे हैं. लुबना कहती हैं कि मेरे पति और बच्चा इंडियन नेशनल हैं और मैं आज भी पाकिस्तानी सिटीजन हूं.
वह बहुत खुश थीं, कभी अपनी नवासी के लिए अमरस लाकर रखती तो कभी बेटी को देने के लिए सामान. जरुरी कागजात उन्होंने ज्यादा पैसे लगाकर स्पीडपोस्ट किये थे ताकि जितनी जल्दी कागज पहुंचेगें उतनी जल्दी वीजा मिलेगा. नसीम बानो की बेटी को करीब दस सालों बाद पाकिस्तान से आने का मौका मिल रहा था, लेकिन 26-11 को सब कुछ थम कर रह गया. बेटी की आने की खबर की खुशी टीवी पर खबर देखते ही काफूर हो गई और वह समझ गईं कि अब यह इंतजार कब खत्म होगा पता नहीं. नसीम ने अपनी बेटी की शादी अपने ही रिश्तेदारों में करीब 15 साल पहले की थी. आज उनके करीब 4 बच्चे हैं, लेकिन वह सिर्फ एक ही बार घर आई है. वहीं लखनऊ के माल एवेन्यू में रहने वाली उमर तलहा की शादी भी पाकिस्तान में हुई है और उनके घर वाले भी हर खुशी और गम के मौके पर उनकी कमी महसूस करते हैं.